एक गांव में स्वराज की बात रखने के पहले हमने दो सवाल पूछे...
बैठक स्थल से दिख रहे एक मन्दिर की ओर इशारा करके पूछा कि ये मन्दिर किसका है?
गांव वालों ने बताया कि हमारा है।
हमने पूछा कि भई अगर इस मन्दिर की एक दीवार गिर जाए तो आप क्या करेंगे...
उन्होंने कहा कि मरम्मत करवा लेते हैं...
अगर ये नुकसान गांव के ही किसी आदमी ने पहुंचाया हो तो आप लोग क्या कर सकते हो?
ज़रूरत पड़ी तो जिस आदमी ने यह नुकसान पहुंचाया है उससे ठीक करवाएंगे, नहीं तो सब मिलकर ठीक करवा लेंगे...
चलिए एक बात और बताइए... मान लीजिए आपका समाज मिलकर किसी आदमी को इस मन्दिर का पुजारी बनाता है। और वह पुजारी समय पर मन्दिर नहीं खोलता है, आपके चाहे अनुसार काम नहीं करता है तो क्या कर सकते है?
उसे हटाकर दूसरे किसी योग्य आदमी को पुजारी नियुक्त कर लेंगे!
हमने अब दूसरा सवाल किया...
अब ज़रा ये बताइए कि अगर आपके गांव में जो सरकारी स्कूल है उसकी कोई दीवार टूट जाती है तो आप क्या करते हैं...?
थोड़ी बहुत चुप्पी के बाद लोग बताते है कि ज्यादा से ज्यादा अधिकारियों के पास सूचना पहुंचवाएंगे...
इसी तरह आपके गांव के अस्पताल में अगर डाक्टर समय पर नहीं आता है, तो आप क्या कर सकते हैं...
कुछ नहीं कर सकते... ज्यादा से ज्यादा उनके अफसर को शिकायत कर सकते हैं, लेकिन होता कुछ नहीं है
गांव का राशन दुकानदार अगर राशन नहीं देता है तो आप क्या कर सकते है?
कुछ नहीं कर सकते... सिर्फ शिकायत कर सकते हैं
शिकायत पर कुछ होता है...?
कुछ नहीं होता।
तो बस हम आपका ध्यान इसी बात की ओर दिलाने आए हैं। जिस तरह आपका मन्दिर आपके नियन्त्रण में है और ज़रूरत पड़ने पर इसके बारे में आप जो चाहे फैसले ले सकते हैं उसी तरह गांव के स्कूल, अस्पताल, राशन दुकान... जो भी काम सरकारी काम हो रहा है, वह सीधे गांव वालों के नियन्त्रण में हो। आप उसके बारे में अपने गांव की बैठकों में फैसले ले सकें और सरकार उन फैसलों को अमल में लाए।
क्योंकि जो आपका अपना है, आपके नियन्त्रण में है वह ठीक चलता है लेकिन जो सरकार का है वहां हम सरकार के अफसरों या नेताओं के आगे हाथ फैला कर खड़े रहने को मजबूर है। खुद कुछ नहीं कर सकते। स्वराज अभियान का सपना है कि यह स्थिति बदले और गांव का विकास गांववालों की जरूरत के हिसाब से हो।
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