Visit blogadda.com to discover Indian blogs मेरा गाँव मेरी सरकार: बिहार के गांवों में स्वराज यात्रा

बिहार के गांवों में स्वराज यात्रा

पटना ज़िले के 25 गांवों में स्वराज यात्रा से शुरू हुआ अभियान

गांव में अलख जगाए बिना स्वराज व्यवस्था लागू नहीं हो सकती। इसी विचार के साथ बिहार में सामाजिक कार्यकर्ता परवीन अमानुल्लाह और उनके साथियों ने गांवों में स्वराज यात्रा की शुरूआत की है। पहले चरण मे स्वराज यात्रा पटना ज़िले के पांच प्रखण्डों के 25 गांवों में गई।
यात्रा के दौरान गांव गांव जाकर लोगों की बैठक के लिए आमन्त्रित किया जाता। बैठक में लोगों के सामने स्वराज से सम्बंधित चर्चा की जाती ताकि लोग लोकतन्त्र में अपनी हैसियत को समझ सके, और उसके हिसाब से अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है सके। पूरी यात्रा के एक गांव में हुई बैठक की बातचीत की बानगी से समझा जा सकता है -


यात्रा निकालने का तरीका
गांव में घूमकर घोषणा:
गांव में चक्कर लगाकर कुछ साथी कार्यकर्ता माइक पर अनाउंसमेट करके आए -
`स्वराज यात्रा आपके गांव में आई है। इसमें कई सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली, पटना से आए हैं और आपके साथ पंचायत में आपके अधिकार के बारे में बात करना चाहते हैं। आपसे अनुरोध् है कि अधिक से अधिक लोग बैठक में पहुंचे…´
थोड़ी ही देर में बैठक में गांव के बहुत से लोग आ गए। इनमें महिलाएं, व्रद्ध, युवा हर तरह के लोग थे लेकिन गांव के नौजवान की एक बड़ी संख्या या तो खेतों पर काम करने गए हुए थे या पटना में नौकरी पर थी अत: नौजवान की संख्या अपेक्षाकृत कुछ कम ही थी। बच्चे भी उत्सुकतावश बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए थे।
 
(परिचय)
हम कौन हैं और कौन नहीं है
बैठक की शुरूआत हुई। एक कार्यकर्ता ने परिचय देते हुए कहा,  `हम लोग आपके गांव में अलग अलग जगह से इकट्ठा होकर, यह स्वराज यात्रा निकालते हुए पहुंचे हैं…´ हम किसी राजनीतिक दल से नहीं आए हैं। न ही हम कोई चुनाव लड़ रहे हैं। न ही हम किसी गांव में किसी उम्मीदवार को पंचायत चुनाव में जिताने के लिए मुहिम चला रहे हैं। हम लोग स्वराज अभियान से आए हैं जो एक जन-अभियान है और किसी राजनीतिक पार्टी से सम्बंधित नहीं है…

(सरकारी पैसे से मेरा रिश्ता)
हम आपके सामने कुछ बातें रखना चाहते हैं… लेकिन उसके पहले आप सब लोगों से एक सवाल है कि आप लोगों में से कौन कौन टैक्स देता है…
(गांव के अधिकतर लोग टैक्स या कर को नहीं समझे)
कार्यकर्ता: तो अच्छा ये बताए कि आपमें से कौन कौन लोग सरकार को पैसा देते हैं… किसी भी तरीके से सरकार को पैसा कौन कौन देता है…
ग्रामवासी: हम लोग कभी कभी देते हैं… जब मालगुजारी देते हैं तब, मकान खेत आदि खरीदते हैं तब देते हैं…
कार्यकर्ता: ये तो ठीक है लेकिन आपको ध्यान नहीं है आप सारे लोग, हर रोज़ सरकार को टैक्स देते है… जब भी आप कुछ खरीदते है जैसे कि माचिस, साबुन, नमक, पेस्ट, दवाई आदि तो उसमें कीमत के साथ साथ सरकार का हिस्सा भी जुड़ा होता है… जैसे कि अगर 5 रुपए की साबुन खरीदते है तो उसमें करीब एक रुपया सरकार को जाता है… तो इस तरह हम सब लोग मिलकर हर रोज़ सरकार को करोड़ों रुपए देते रहते हैं… इस पैसे से ही सरकार हमें राशन देती है, इन्दिरा आवास देती है, पेंशन देती है, नल लगवाती है, सड़क बनवाती है, आंगनवाड़ी बनवाती है, स्कूल चलाती है… और इसी पैसे से सारे सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह मिलती है… तो ये जो सरकार के काम हैं ये इस सबमें हमारा पैसा ही खर्च होता है…

 
(जब पैसा मेरा है तो मुझसे पूछते क्यों नही)
लेकिन अब एक बात बताइए कि सरकार के नेता और अपफसरों ने हमसे कभी पूछा कि आपका पैसा, आपके गांव में हम कहां, कैसे, किस काम पर खर्च करें…
ग्रामीण : नहीं… हमसे तो कभी नहीं पूछते…. कभी किसी ने आज तक नहीं पूछा।
कार्यकर्ता: सही बात है…. दिल्ली और पटना में बैठे अधिकारी योजनाएं बनाकर भेज देते हैं और लोक अफसर को दे देते हैं कि जाओ भाई इन्हें गांव में बांट आओ ये अफसर और गांव का मुखिया मिलकर इन योजनाओं को भी खा जाते हैं या अपनों में बांट देते हैं…
अब एक बात बताइए… ये अफसर आपके पैसे से तनख्वाह लेते हैं। लेकिन कभी आकर आपसे कुछ बात पूछते हैं कि फलां योजना लेकर आये हैं… आप बताइए कि इसका लाभ किसको मिलना चाहिए…
ग्रामीण: मुखिया के साथ मिलकर सब तय हो जाता है… जिनके पास पक्के मकान हैं उनको मकान बनाने का पैसा मिल रहा है और, हम गरीबों को कोई कुछ नहीं बताता…

उत्साहजनक रहा है। पांच दिन की इस यात्रा में ही स्वराज अभियान के लिए अनेक नए साथी मिल गए हैं। हालांकि सभी गांवों को एक साथ देखेंगे तो मिला जुला अनुभव रहा है। कई गांवों में तो लगा जैसे स्वराज का विचार सुनते ही लोगों में क्रान्ति की लहर दौड़ती है। कई गांवों में पूरी बात सुनने के बाद जब लोगों से पूछा कि अब क्या करने का इरादा है तो लोग ऐसे देखते रहे मानो उन्होंने कुछ सुना ही न हो। लेकिन कुल मिलाकर कहें तो हमें उम्मीद से अधिक सफलता मिली है। - परवीन अमानुल्ला


(ये सरकारी कर्मचारी हमारे सेवक हैं या मालिक)
कार्यकर्ता: सही बात है… और ये आपके गांव में ही नहीं पूरे देश में… साढ़े चार लाख गांवों में ऐसा ही किया जा रहा है… एक और बात बताइए… आपके गांव में सरकारी कर्मचारी कौन कौन से हैं… जैसे टीचर हैं, पंचायत सेवक है… ऐसे और कौन कौन से कर्मचारी हैं जो आपके गांव में काम करते हैं
ग्रामीण: पटवारी है, ए.एन.एम. है, राशन डीलर है, आंगनवाड़ी है,… हफ्ते में एक दिन डॉक्टर का टर्न है… रोज़गार सेवक है… और भी कुछ लोग हैं।
कार्यकर्ता: तो इन सब कर्मचारियों को तनख्वाह हमारे पैसे से मिलती है… और हमारे लिए काम करने के लिए मिलती है… पर ये कर्मचारी कभी हमसे आकर पूछते हैं कि बताओ क्या करें… हमें ये काम करना है, बताओ कैसे करें, कहां करें… और अगर ये अपना काम ठीक से ना करें तो आप इनका कुछ बिगाड़ सकते हैं… किसी के खिलाफ आप कुछ एक्शन ले सकते हैं… कुछ ऐसा तरीका है कि आप इनके खिलाफ एक्शन ले सकें…
ग्रामीण: तरीका तो है… इनकी शिकायत कर सकते हैं… बड़े अफसरों के पास… पर बड़े अफसर भी तो हमारी नहीं सुनते…
कार्यकर्ता: ठीक बात है… आपकी शिकायत पर किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई कोई एक्शन नहीं लिया गया होगा…
कार्यकर्ता: तो जब इनको तनख्वाह हमारे पैसे से मिलती है, हमारे लिए काम काम करने के लिए मिलती है फिर ये अगर हमारे हिसाब से काम न करें तो क्या इनकी तनख्वाह काटने का अधिकार हमारे हाथ में नहीं होना चाहिए… क्या इनके खिलाफ एक्शन लेने का अधिकार हमारे गांव के लोगों को नहीं होना चाहिए… मान लीजिए टीचर टाइम पर नहीं आता या ठीक से नहीं पढ़ाता… अगर गांव के लोगों के हाथ में उसकी तनख्वाह काटने की ताकत होती तो क्या हम सारे लोग मिलकर उसकी तनख्वाह नहीं कटवा देते…. अगर राशन की दुकान कैंसिल करने की ताकत हमारे हाथ में होती तो क्या राशन वाला चोरी करता…
ग्रामीण: हमारे हाथ में ताकत होती तो हम उसे चोरी क्यों करने देते… उसे कहते कि भई सब गरीबों को राशन बांटों….
कार्यकर्ता: एकदम सही बात है…. यही बात हम कहने आए हैं कि अभी आपके हाथ में एक्शन लेने की ताकत नहीं है… इसके लिए एक कानून बनाना पड़ेगा, पंचायती राज में सुधार करके इसे ठीक करना पड़ेगा कि- गांव के कर्मचारियों के खिलाफ एक्शन लेने, उनकी तनख्वाह काटने की ताकत सीधी गांव की जनता के हाथ में हो… वे जब चाहें एक साथ बैठकर, खुली बैठक में फैसला ले सकें कि ये आदमी ठीक से काम नहीं कर रहा… इसके खिलाफ ये एक्शन लें…. अगर ऐसी ताकत गांव के लोगों को मिल गई तो गांव में काम करने वाले सारे सरकारी कर्मचारी सुध्र जाएंगे…
…तो अब बताओ कि ऐसा कानून आना चाहिए कि नहीं…

(पंचायती राज कानून में सुधार)
ग्रामीण: बिल्कुल आना चाहिए…
कार्यकर्ता: तो हम ये यात्रा इसी मकसद से निकाल रहे हैं कि गांव गांव में लोग इस बात को समझें और सरकार से ऐसे कानून की मांग करने लगें… इसमें हमें चार चीज़ें मांगनी होंगी…
एक तो- गांव में सरकार द्वारा खर्च होने वाले एक एक पैसे के बारे में गांव के लोग तय करेंगे कि यह किस काम पर, कहां और कैसे खर्च होगा।
दूसरे- गांव गांव में काम करने वाले सारे सरकारी कर्मचारी जैसे अध्यापक, ए.एन.एम आदि,  सीधे गांव की जनता के यानि ग्राम सभा के नियन्त्रण में हो। गांव के लोग ग्राम सभा की बैठक में ठीक से काम न करने वाले कर्मचारियों के ऊपर ज़ुर्माना लगाने, तनख्वाह रोकने के फैसले ले सके।
तीसरे- गांव की जनता यानि ग्राम सभा को यह ताकत हो कि बीडीयों जैसे अफसरों को ग्राम सभा की बैठक में आने के लिए आदेश दे सके और उनके लिए ये आदेश मानना ज़रूरी हो।
चौथी बात है कि- राज्य सरकार की कोई भी नीति गांव की जनता से पूछे बिना न बने। बनाने से पहले राज्य सरकार के लिए राज्य की सभी ग्राम सभाओं से मशविरा लेना अनिवार्य हो…
पांचवी और सबसे खास बात ये भी कि- सारे स्थानीय प्राकृतिक संसाधन जैसे नदी, जंगल ज़मीन… सब सीधे गांव की जनता के नियन्त्रण में हों, ग्राम सभा का सीध नियन्त्रण हो और किसी गांव के इलाके में आने वाली ज़मीन का अधिग्रहण बिना ग्राम सभा की मंज़ूरी के सम्भव न हो इसके लिए नियम शर्ते भी ग्राम सभा में ही तय हों।
तो ये मांग लेकर हम स्वराज यात्रा पर निकले हैं… इसके लिए कानून बदलने की ज़रूरत पड़ेगी। लेकिन बड़े पैमाने पर जनान्दोलन चलाए बिना यह नहीं हो सकता। हम सबको इसके लिए कमर कसनी होगी। हमारा अनुरोध् है कि आप सब इस आन्दोलन से जुड़िए…
ग्रामीण : ठीक बात है… हां! सब इससे जुड़ने को तैयार हैं…
 
(लेकिन अभी क्या कर सकते है)
कार्यकर्ता: बहुत अच्छी बात है कि आप सब इससे जुड़ने को तैयार हैं? लेकिन जब तक कानून नहीं बदले जाते तब तक भी हम अपने गांव में बहुत कुछ कर सकते हैं… पंचायती राज कानून के बारे में आप जानते हैं…
ग्रामीण: जानते हैं, मुखिया का चुनाव होता है
कार्यकर्ता: ठीक बात है… मुखिया की ज़िम्मेदारी है कि साल में कम से कम चार बार गांव की जनता की बैठक बुलाए… इस बैठक को ग्राम सभा की बैठक या खुली बैठक कहते हैं…. साल में कम से कम चार बैठक बुलवाना तो मुखिया की मजबूरी है… ज़रूरत पड़े तो हरेक महीने, यहां तक हर हफ्रते भी बैठक बुला सकता है… आपके गांव में कभी कोई बैठक होती है….
लोग: कभी नहीं होती… हमको तो कभी कोई बैठक में नहीं बुलाता…
कार्यकर्ता: बिल्कुल नहीं बुलाता होगा… लेकिन अब आप जान लीजिए… कि हरेक गांव में साल में कम से कम चार बैठकें तो मुखिया को बुलानी ही पड़ेंगी… और इन बैठकों में ही तय होगा कि किसको इन्दिरा आवास का घर मिलेगा, किसको पेंशन बंधेगी… किसको बीपीएल मिलेगा… ये सब इन बैठकों में ही तय करना होता है… आपका मुखिया भी कागजों पर ये बैठक करा देता होगा और आपमें से कुछ लोगों के अंगूठे लगाकर खानापूर्ति कर देता होगा…
लोग: ये तो हमको मालूम नहीं… कर देता होगा…
कार्यकर्ता: देखिए ये बैठकें आपकी ज़िन्दगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं… और आपके गांव में ही नहीं देश के लगभग सब गांवों में यही हाल है… हम पिछले चार साल से गांव गांव घूम रहे हैं… ज्यादातर गांवों में फर्जी अंगूठे लगा लगा कर बैठकें दिखाई जाती हैं… लेकिन फिर भी देश में करीब डेढ हज़ार गांव ऐसे हैं जहां ये बैठकें हो रही हैं… और ये गांव आज देश में सबसे अच्छे,… सबसे सुन्दर गांव हैं… यहां सबसे अच्छा विकास हो रहा है…

(हिवरे बाज़ार की कहानी)
एक गांव में हम गए तो वहां तो पिछले बीस साल से सारे फैसले ग्राम सभा बैठकों में ही हो रहे हैं…
इस गांव में लोग 20 साल पहले आपस में इतना लड़ते थे कि हफ्ते में एक बार पुलिस का आना तो आम बात थी। हर घर में शराब बनती थी। आसपास के इलाके में पूरा गांव बदनाम था। लेकिन 20 साल पहले यहां के 10-15 युवाओं ने मिलकर तय किया कि अब हमारे गांव में ऐसा नहीं होगा। इसकें लिए उन्होंने ग्राम सभा का रास्ता चुना। उन्होंने अपने में से एक युवक को मिलकर मुखिया बनवाया और इसके बाद गांव का हर फैसला ग्राम सभा में लेना शुरू कर दिया गया।
पिछले 20 साल से वहां हर महीने कम से कम एक ग्राम सभा होती है… ज़रूरत पड़ने पर हफ्ते में भी ग्राम सभा होती है… इन ग्राम सभाओं के चलते ही आज यह गांव देश का सबसे अच्छा गांव बन गया है।
20 साल में इस गांव की काया पलट गई है। 1989 में वहां प्रति व्यक्ति आय मात्रा 840/- प्रति वर्ष थी। अब वह बढ़कर 28000/- हो गई है। 1989 में वहां 90 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। अब केवल तीन परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। अब पिछले पांच वर्षों में एक भी अपराध् नहीं हुआ है। पहले लोग झुिग्गयों में रहते थे। अब सबके पक्के मकान हैं। हर मकान में बिजली और पानी है। गांव में खूबसूरत सड़कें हैं, बढ़िया अस्पताल है, बढ़िया स्कूल है. यह चमत्कार इसलिए हुआ क्योंकि यहां हर फैसला खुली बैठक में यानि कि ग्राम सभा में सीधे जनता लेती है।
और ये चमत्कार आपके गांव में भी हो सकता है… आप में से अगर 10 युवा भी दिल पर हाथ रखकर ये सोचें कि मैं अपने गांव से प्यार करता हूं और अपने गांव के लिए कुछ करना मेरा फर्ज है तो आपके गांव में भी ग्राम सभाएं शुरू हो सकती है।
अगर आपके गांव में भी ग्राम सभा बैठकें होने लगें तो ये गांव भी हिवरे बाज़ार की तरह बन सकता है। आज के कानून के हिसाब से भी… अगर ग्राम सभा बैठकें करवाने लगें तो हालात काफी सुधर सकते हैं…
तो हम यहां कुल मिलाकर दो बातें रख रहे हैं… एक तो नया कानून लाने की जिसके हिसाब से सरकार का सारा काम, पैसा और कर्मचारी सीधे सीधे गांव की जनता के नियन्त्रण में होना चाहिए. .. दूसरी बात ये कि आप अपने गांव में ग्राम सभा की बैठकों की शुरुआत कराइए…. बिना ग्राम सभा की बैठक के आपके गांव में कुछ काम न हो… पहली बात नया कानून बनाने की… कानून बनना तो अभी दूर की बात है, इसके लिए आन्दोलन करना पडे़गा… पर ग्राम सभा का कानून तो पहले से ही बना हुआ है… इसका पालन कराना हमारे लिए आज ही से सम्भव है…
लोग: लेकिन हमारे यहां तो लोगों में एकता ही नहीं है…
 
(एक्शन प्लान)
कार्यकर्ता: आप ठीक कह रहे हैं… लेकिन अब हमारे सामने दो-तीन ही विकल्प हैं… या तो भगवान एक दिन हमारे गांव के तमाम लोगों आशीर्वाद दे दे कि भई आज से तुम एकता में जियोगे… तो तब तक का इन्तज़ार किया जाए. इस तरह हम अगले 100 साल, हज़ार साल इन्तज़ार करते रहें… या फिर हम लोगों की बैठके करवाना शुरू करें… शुरू में थोड़े बहुत मतभेद सामने आएंगे लेकिन जब ग्राम सभाओं के नतीज़े निकलने लगेंगे तो धीरे धीरे सब एक होने लगेंगे… एक और रास्ता ये भी है कि दिल्ली या पटना में कभी कोई महान नेता ऐसा हो जाए जो हमारे गांव की सुधार दे और हमारे गांव में ग्राम सभा करवाने के लिए व्यवस्था कर दे… तो अब बताईए आप कौन सा रास्ता चुनना चाहते हैं… इन्तज़ार का या खुद कुछ करने का…
लोग : खुद ही कुछ करना पड़ेगा वरना तो सुधार नहीं होने वाला…
कार्यकर्ता : एकदम ठीक कहा आपने… अब इतनी बात जानने सुनने के बाद बताईए कि यहां मौजूद लोगों में से खासकर युवाओं में से कौन कौन लोग सोचते हैं कि उन्हें कुछ करना है, किसका मन बना है कि अपनी ज़िम्मेदारी निभाई जाए…
(थोड़ी बहुत चुप्पी के बाद कम से कम 10-15 लोग आगे आते हैं और अपना नाम आदि लिखवाते है)
बिख्तयारपुर प्रखण्ड के सैदपुर गांव में तो लोगों ने आगे आकर शपथ ली कि वे अब ग्राम सभा पर ही काम करेंगे।
इस तरह हरेक गांव से 10-15 युवाओं का समूह बनता जा रहा है। परवीन अमानुल्लाह का कहना है कि एक बार यात्रा पूरी होने के बाद इन युवाओं को पटना में बुलाकर एक दिन के लिए इन्हें और गहराई से स्वराज के बारे में समझाया जाएगा। और तब इनके साथ मिलकर आस पास के अन्य गांवों में भी स्वराज अभियान चलाया जाएगा।

1 comments:

JAIVIK GRAM said...

Apka blog Acha hai

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