Visit blogadda.com to discover Indian blogs मेरा गाँव मेरी सरकार: लाचार सांसद और विधायक !

लाचार सांसद और विधायक !

प्राय: लोग अपने इलाके की समस्याओं के लिए अपने इलाके के निर्वाचित विधायकों या सांसदों की आलोचना की आलोचना करते रहते हैं। बिना ये सोचे समझे कि असल में ये विधायक और सांसद भी तब तक आम आदमी की तरह असहाय रहते हैं जब तक कि वे मंत्री नहीं बनते। आखिरकार भारतीय लोकतन्त्र में इन सांसदों और विधायकों की क्या भूमिका है? संविधान के अनुसार ये महज़ संसद या विधान सभा के एक सदस्य भर हैं। जब तक उन्हें कार्यपालिका में शामिल नहीं किया जाता, तब तक उनकी भूमिका विधायिका की बैठक में बहस करने और अच्छे कानून बनाने का काम करने की है। उनके पास ये अधिकार भी नहीं होता कि किसी विधेयक के समर्थन या विरोध् में, अपने संज्ञान के आधार पर वोट कर सके। उन्हें अपनें पार्टी द्वारा जारी व्हिप को माना पड़ता है। 
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस विधायक या सांसद को जनता चुनती है, वह किसी मसले पर संसद में क्या वोट करेगा यह न तो वह खुद तय कर सकता है उनकी जनता, उसे सिर्फ अपने पार्टी हाईकमान का आदेश मानना पड़ता है। यह दुर्भाग्य ही है कि आम संसद और विधान सभाओं में लोगों का प्रतिनिधि क्या करेगा इसमें लोगों की कोई भूमिका नहीं होती। 
आम आदमी को अपने विधायकों और सांसदों से काफी अपेक्षाएं होती है। अगर उनके इलाके में कुछ गलत होता है तो वे अपने विधायक या सांसद के पास जाते है जिनके पास रोजमर्रा की समस्याओं जैसे बिजली, सड़क, पानी इत्यादि को हल करने के लिए कोई प्रशासनिक अधिकार नहीं होता। हां वे विधान सभा या संसद में इस मुद्दें को उठा सकते है लेकिन ज़ाहिर है यहां व्यक्तिगत समस्याओं के मुद्दे उठाना सम्भव ही नहीं है। विधान सभा या संसद में ऐसे ही मामले उठ सकते हैं जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हो। फिर भी, यदि मुद्दा उठ भी जाए तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सरकार उस समस्या का समाधान जनता या उसके प्रतिनिधि की अपेक्षाओं के अनुरूप करेगी। 
चुंकि इस तरह के मामलों की संख्या भी ज्यादा होती है, बहुत से सांसद या विधायक सवाल भी करना चाहते है लेकिन संसद या विधान सभा में इतना वक्त नहीं होता कि इन सभी मामलों को वहां रखा जा सके। संसद में आने वाले सवालों का चयन लॉटरी के माध्यम से होता है और हमें ये पता नहीं होता कि कौन से मुद्दें शामिल हो पाएंगे।
सांसदों और विधायकों को अपने इलाके के विकास के लिए सलाना 2 करोड़ रुपये मिलते है। अगर सांसद या विधायक इस पैसे को अपनी जेब भरने की जगह वास्तव में जनहित में क्गर्च करते हैं तो उनका उन विभागों पर कोई नियन्त्रण नहीं रहता है जिन्हें यह काम करना है। 
इसलिए ऐसे अधिकार विहीन विधायकों और सांसदों के ऊपर रोजमर्रा  की समस्याओं के लिए सीधे-सीधे दोष मढ़ना भी ठीक नहीं है। इनसे कहीं ज्यादा दोष, कार्यपालिका को चलाने वाले सत्ताधारी दल या गठबंधन के मंत्री और अधिकारियों का है।
यहां स्थानीय अधिकारियों को ग्राम सभा (ग्रामीण इलाकों मे) और मोहल्ला सभा (शहरी इलाकों मे) के प्रति सीधे-सीधे उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है। 
राजनैतिक दल जनता को अधिकार देने से डर रहे हैं, उन्हें लगता है कि ऐसा करने से विधायकों और सांसदों का महत्व खत्म हे जाएगा। लेकिन ऐसी आशंकाए गलत है। उल्टे यदि रोजमर्रा की समस्याओं, मसलन स्ट्रीट लाइट, सीवर इत्यादि का समाधान निकालने की ताकत जनता को मिल जाएगी तो, सांसदों और विधायकों को अन्य महत्वपूर्ण काम करने के लिए वक्त मिलेगा।
बहुत से लोग ये सोचते है कि राजनीति में अच्छे लोगों के आने से अच्छे विधायक और सांसद निकल कर सामने आएंगें तो सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। लेकिन लोग ये नहीं सोचते कि इससे न तो विधानसभा या संसद का कामकाज सुध्र सकेगा जहां जन प्रतिनिधि, जनता की राय पर नहीं पार्टी आलाकमान की राय पर चलते हैं और न ही कार्यपालिका की दशा पर इससे कुछ असर पड़ेगा। असल बदलाव तभी आयेगा जब बुनियादी स्तर पर ग्राम सभाओं को अधिकार दिया जायेगा ताकि लोग खुद अपने स्थानीय मुद्दों पर फैसले ले सकें।

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