शिक्षा व्यवस्था में आज लोगों को मुख्यत: चार प्रकार की समस्याएं नज़र आती हैं – स्कूलों में सुविधाओं की कमी, अध्यापकों की कमी, उनका अनुपस्थित रहना और जो आते हैं उनका ठीक से न पढ़ाना।
अभी स्कूल में सुविधाए देने का काम केंद्र और राज्यों की सरकारें तय करती हैं। एक स्कूल में वास्तव में आवश्यकता क्या है, उसे कमरा चाहिए या डेस्क या पंखा। किसी भी अधिकारी के लिए मुख्यालयों में बैठकर हरेक स्कूल के लिए यह तय करना मुश्किल है। अगर यह काम उस मोहल्ले या गांव के लोग करेंगे, जहां यह स्कूल है तो वास्तविक ज़रूरतों को समझना, उनकी प्राथमिकताएं तय करना और उन्हें सही कीमत पर खरीदना आसान हो जाएगा। इसी तरह शिक्षकों के न होने, अनुपस्थित रहने या ठीक से न पढ़ाने की समस्या भी सुलझ सकती है। आज अगर कोई असंतुष्ट अभिभावक शिकायत करना चाहे तो वह ज्यादा से ज्यादा प्रधनाचार्य या अधिकारियों को चिट्ठी लिख सकता है। लेकिन आज सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब या अशिक्षित परिवारों से होते हैं। अत: इनकी शिकायतों को भी कूड़े के डब्बे में फेंक दिया जाता है। अगर कहीं कोई अधिकारी अच्छा भी है तो अपने नीचे के अधिकारियों और शिक्षकों का सहयोग नहीं मिलता।
स्वराज व्यवस्था के लिए ग्राम या मोहल्ला सभा के पास यह अधिकार होना चाहिए के लोग सीधे नाकारा अध्यापकों के खिलाफ कार्रवाई का फैसला ले सकें। मध्य प्रदेश में 2002 में ग्राम सभाओं को ऐसा अधिकार मिला है और इसका फायदा यह हुआ है कि बड़ी संख्या में शिक्षा कर्मी और अध्यापक अपना काम ठीक से करने लगे हैं। लेकिन यह ध्यान रखने वाली बात है कि यह अधिकार ग्राम सभा के पास होना चाहिए न कि सरपंच के पास। क्योंकि सरपंच को अधिकार देने में, उसके भी भ्रष्ट होने की संभावनाएं बनी रहती हैं।
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