Visit blogadda.com to discover Indian blogs मेरा गाँव मेरी सरकार: खुली बैठक में बदला राज

खुली बैठक में बदला राज

रात के आठ बज रहे थे। यह वक्त देश के ज्यादातर गांवों की तरह महेन्द्रगढ़ के बेवल गांव के लिए भी खा-पीकर सोने का था। लेकिन उस रात पूरा गांव जाग रहा था। इससे ज्यादा अजीब बात थी कि ज़िले के दो आला अधिकारियों की भी आंखें थकने के बावजूद खुली रहने के लिए मजबूर थी। 13 सितम्बर 2010 की उस रात बेवल गांव में जो कुछ हुआ, उसने पूरे देश में एक नई सुबह की उम्मीद जगा दी है। गांव में हुई इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बनकर लौटे विनोद अग्रहरि की रिपोर्ट-  

हरियाणा के महेन्द्रगढ़ ज़िला मुख्यालय से क़रीब तीस किलोमीटर दूर स्थित बेवल गांव एक पारंपरिक गांव की सारी ख़ूबियों को समेटे हुए है। एक ऐसा गांव, जहां विकास कागज़ों में तो दौड़ता है मगर गांव की हालत देखकर लगता है कि वह बैलगाड़ी पर सवार है। इलाक़े की बलुई मिट्टी बग़ैर ठीक से पानी पिए गांव का पेट नहीं भरती है। इसके बावजूद गांव की ज्यादातर आबादी के पास खेती पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
विकल्प की ऐसी ही कमी चुनाव के मामले में भी थी। भ्रष्टाचार की तमाम शिक़ायतों के बावजूद गांव का सरपंच लगातार दो बार जीतने में कामयाब हो चुका था। लेकिन जून 2010 में हुए पंचायत चुनाव में सरपंच महावीर सिंह का मुक़ाबला संजय ब्रह्मचारी उर्फ़ स्वामी जी से हुआ। 40 साल के स्वामी जी ने ऐलान किया कि सरपंच बनने पर वो गांव से जुड़े सभी फैसले ग्राम सभा की खुली बैठक में लेंगे।
बेवल में ग्राम सभा की खुली बैठक कभी नहीं हुई थी। लिहाज़ा गांव के लोगों को ये आइडिया रास आ गया। नतीजा, प्रचार पर बग़ैर पैसे ख़र्च किए स्वामी जी क़रीब पांच सौ वोटों से सरपंच का चुनाव जीत गए। नए सरपंच ने पारी की शुरुआत अपने किए गए वादे के साथ करने का फैसला किया। स्वामी जी ने कहा कि वह सरपंच के चार्ज लेने की औपचारिकता ग्राम सभा की बैठक में पूरी करेंगे। 
क़ानून के मुताबिक हारे हुए सरपंच को नए सरपंच के हाथों में चार्ज सौंपना होता है, जिसमें पुराना सरपंच अपने कार्यकाल के दौरान रखे गए खातों और काग़ज़ात को नए सरपंच के हवाले करता है। हालांकि आमतौर पर होता यह है कि अधिकारी इन खातों को सरपंच को अकेले में सौंपकर उससे चार्ज लेने सम्बन्धी काग़ज़ पर दस्तख़त ले लेते हैं।  लेकिन स्वामी जी ने ऐसा करने से मना कर दिया।
महीना गुज़र गया। स्वामी जी को चार्ज नहीं दिया गया। एक दिन ग्राम सचिव समेत कुछ अधिकारी चार्ज देने के लिए पहुंचे। स्वामी जी ने ग्राम सभा की बैठक बुला ली। जब काग़ज़ों का मिलान शुरु हुआ, तो उनमें भारी गड़बड़ी पाई गई। जमा शेष यानी कैश इन हैड और वास्तविक रक़म में काफ़ी अन्तर था।
स्वामी जी के मुताबिक गांव के तमाम पफण्डों से क़रीब साढ़े तीन लाख रुपये की रक़म सरपंच ने अपना कार्यकाल ख़त्म होने के बाद निकाल ली। जबकि क़ानून के मुताबिक कार्यकाल ख़त्म होने के बाद सरपंच गांव के किसी भी फण्ड से पैसे नहीं निकाल सकता, और उसे सारे काग़ज़ात उसी वक्त बीडीओ के पास जमा करने होते हैं। इसके अलावा रिकॉर्ड में कई और अनियमितताएं पाई गईं।
स्वामी जी ने कहा कि वो चार्ज तभी लेंगे, जब इन सारी गड़बड़ियों को अधिकारी लिखित रूप में देंगे। अधिकारी अगले दिन आने और सब कुछ लिखित में देने का आश्वासन देकर चले गए। लेकिन अगले कई दिनों तक अधिकारी आए ही नहीं। उल्टे स्वामी जी को नोटिस मिल गया कि उन्होंने अधिकारियों को गांव में बंधक बनाकर रखा।
प्रशासन की मनमर्जी यहीं ख़त्म नहीं हुई। चार्ज नहीं दिए जाने के लिए स्वामी जी को जिम्मेदार ठहराते हुए जिले के डिप्यूटी कमिश्नर ने उन्हें एक कारण बताओ नोटिस थमा दिया गया कि क्यों न उन्हें सस्पेण्ड कर दिया जाए। जबकि हरियाणा पंचायती राज अधिनियम, 1994 ऐसे किसी आधार पर एक चुने हुए सरपंच को निलंबित करने का अधिकार डीसी को नहीं देता।
बात हैरत में डालने वाली थी कि एक आदमी जो पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ काम करना चाहता है, उसे ही प्रशासन की तरफ से परेशान किया जाए। और भी हैरत की बात ये थी कि इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा से मिलने पर भी कुछ हासिल नहीं हुआ। लेकिन स्वामी जी के साथ पूरा गांव खड़ा था, इसलिए प्रशासन को झुकना ही पड़ा।
13 सितम्बर को सुबह दस बजे जिले के दो आला अधिकारी मामले को सुलटाने के लिए गांव में पहुंचे। ये थे ज़िला विकास एवं पंचायत अधिकारी (डीडीपीओ) दीपक यादव और अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) पंकज। उस वक्त दिल्ली से एक मीडिया टीम कवरेज के लिए पहुंची हुई थी। स्वामी जी ने अधिकारियों के पहुंचते ही ग्राम सभा की बैठक बुला ली।
गांव के एक प्राचीन मिन्दर के पास स्थित हॉल के अन्दर सुबह 11 बजे अधिकारियों की मौजूदगी में ग्राम सभा की बैठक शुरु हुई। काग़ज़ात से भरी दो बोरियां सबके सामने रखी गईं। इसके बाद एक-एक करके इन रिकॉर्ड्स और वाउचर का मिलान करने का काम शुरू किया गया। यह काम मुश्किल और थकाऊ होने के बावजूद बेहद ज़रूरी था।
एक के बाद एक गड़बड़ियां सामने आ रही थी। मसलन कैशबुक में दिखाई गई राशि से कहीं ज्यादा पैसे निकाले गए थे। कई जगहों पर वाउचर एंट्री की गई है, लेकिन रसीदें नदारद थीं। कहीं कैशबुक में एंट्री थी, लेकिन मस्टरोल का पता नहीं चला। गांव के कई फण्ड से लाखों रुपये ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से निकाले जाने की बात सामने आई।
पूर्व सरपंच महावीर सिंह इस पूरी कार्यवाही के दौरान ग़ैरमौजूद रहे, लेकिन दोनों अफ़सर करीब नों घंटे तक सभा से हिले तक नहीं। शाम हो चली थी। लगा कि आज काम ख़त्म नहीं हो पाएगा। लेकिन गांव वाले हैण्डओवर दिलाने का मन बना चुके थे, तो वहीं दूसरी तरफ अधिकारियों को भी लगने लगा था कि आज उनकी जान छूटने वाली नहीं है।
दिलचस्प बात ये रही कि कई घंटे से चल रही कार्यवाही के बावजूद ये तय नहीं था कि चार्ज सौंपा जा सकेगा या नहीं। क़रीब नौ घंटे बाद यह पाया गया कि चार्ज लेने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण ज्यादातर मुख्य रिकॉर्ड्स का मिलान किया जा चुका है। लेकिन इनमें सामने आई गड़बड़ियों की ज़िम्मेदारी कौन लेगा, यह सवाल अब भी बना हुआ था।
अधिकारी गड़बड़ियों के बारे में कुछ भी लिखित में देने से कतरा रहे थे। लेकिन स्वामी जी बग़ैर लिखित में दिए जाने के लिए चार्ज नहीं लेने की मांग पर अड़े रहे। ग्राम सभा में मौजूद लोगों की तरफ से उन्हें मिलने वाले समर्थन के कारण अधिकारी गड़बड़ियों के बारे में एकनॉलेजमेंट देने के लिए तैयार हो गए।

आखिरकार रात सवा आठ बजे यानी नौ घंटे से ज्यादा समय बीतने के बाद नव निवार्चित सरपंच स्वामी जी ने चार्ज लेने की घोषणा की। देश के इतिहास में सम्भवत: यह पहला मामला है, जब किसी सरपंच को ग्राम सभा की खुली बैठक में चार्ज सौंपा गया हो। बेवल गांव की ये घटना देश के लाखों अन्य गांवों के लिए एक नज़ीर साबित हो सकती है।
बेवल गांव के लोगों ने अपने इस संघर्ष से सन्देश दिया है कि पंचायती राज का मक़सद तभी पूरा हो पाएगा, जब पंचायतें चन्द लोगों के हाथ की जागीर बनकर न रहें। गांव का विकास और खुशहाली तभी मुमकिन है, जब फैसले लेने की ताक़त वास्तव में उन्हें मिले। स्वराज के इस रास्ते पर बेवल गांव को अभी काफी दूर तक चलना है, लेकिन इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण यानी पहला क़दम गांव के लोगों ने बढ़ा दिया है। 

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