राजस्थान के चुरू ज़िले में बसा गोपालपुरा गांव बताता है कि ग्राम सभाओं के माध्यम से विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक काम न सिर्फ किए जा सकते हैं बल्कि इन्हें बरकरार भी रखा जा सकता है। इस गांव की पिछली सरपंच ने ग्राम सभाओं का जो सिलसिला शुरू किया वह अगली पंचायत में भी जारी है। अक्सर देखा गया है कि पंचायत चुनाव में अगर सरपंच बदल गया तो समझो कि गांव की राजनीति की धुरी बदल जाती है। लेकिन गोपालपुरा इसका अपवाद है क्योंकि यहां की पंचायत का कामकाज पंच और सरपंच नहीं बल्कि ग्राम सभाओं में तय होता है। और यही वजह है कि फरवरी 2010 में हुए पंचायत चुनाव में गांव का सरपंच बदलने के बाद भी गांव में ग्राम सभा की ही राजनीति चल रही है।
सन 2005 तक इस गांव के लोग सूखा और गरीबी से जूझ रहे थे। लेकिन आज यहां हरियाली है, तपती गर्मी में भी गांव के तालाब में पानी बचा हुआ है। बारिश के महीने में तो तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं। सूखाप्रभावित ज़िलों में, गर्मी के महीने में भी गांव में हरियाली दिखना बताता है कि गांव की ज़मीन के नीचे पानी है। पत्थर की खदानों में आज यहां उतना ही खनन होता है जितने की इजाज़त है। आवारा पशुओं से फसलों की रक्षा के लिए गांव के किसान अपनी पंचायत को टैक्स देते हैं। गांव को देखकर लगता है कि धीरे-धीरे, खुशहाली, यहां लौट रही है। और इसकी बुनियाद कहीं और नहीं बल्कि खुद गांव के लोग अपनी ग्राम सभाओं में रख रहे हैं।
गांव में अब हर तरफ सफाई रहने लगी है। विकास के काम का पैसा गांव के विकास में लग रहा है। गरीबों के लिए बनी योजनाओं का लाभ उन लोगों तक पहुंचने लगा है जो गांव में सबसे गरीब हैं। दीवारों पर शिक्षा और पानी को लेकर नारे हर तरफ दिखते हैं जो खुद गांव वालों ने लिखे हैं वह भी बेहद सरल भाषा में। उदाहरण के लिए पानी बचाने के लिए लिखा है, `जल नहीं तो कल नहीं´ केन्द्र और राज्यों के नेता व अधिकारी गांव की उन्नति को देखने समझने के लिए यहां आ रहे हैं। पूर्व सरपंच सविता राठी को देश विदेश में बुलाया जा रहा है कि आखिर उन्होंने एक गांव का रवैया कैसे बदल दिया?
गांव में पिछले पांच साल से हर महीने ग्राम सभा की कम से कम एक बैठक ज़रूर होती है। एक पिछड़े और गरीब गांव के विकास के लिए पांच साल कोई बहुत लंबा समय नहीं होता लेकिन ग्राम सभा बैठकों में लिए गए फैसलों से यहां लोगों को खुद पर भरोसा होने लगा है। उनमें विश्वास जागा है कि उनके गांव की स्थिति भी बेहतर हो सकती है। तीन गांव को मिलाकर ये पंचायत बनती है: गोपालपुरा, सुरवास और डूंगरघाटी। गोपालपुरा में करीब 800 परिवार हैं। सुरवास में 150 और डूंगरघाटी अलग गांव नहीं है अलग से बस्ती है इसमें भी 150 परिवार। कुल मिलाकर 6000 की आबादी। ज्यादातर लोग पिछड़ी जातियों से हैं।
इस बदलाव की शुरुआत हुई पिछले पंचायत चुनाव के बाद, 2005 में हुए पंचायत चुनाव में लोगों ने सविता राठी को सरपंच चुना। वकालत की पढ़ाई कर चुकीं सविता राठी ने सबसे पहला काम यह किया कि गांव की बैठक खुली बुलाई। इन बैठकों में उन्होंने लोगों से पूछा कि गांव में क्या क्या काम किए जाने की ज़रूरत है। गांववालों ने एक स्वर में कहा कि सबसे पहले तो पानी चाहिए। पिफर गांव की गोचर भूमि पर अवैध् खनन को रोकना ज़रूरी है। ग्राम सभा में सामने आई ज़रूरतों पर ग्राम सभा में ही योजनाएं बनी। 2005 से 2025 तक का एक मास्टर प्लान बनाया गया। इसमें आकलन किया गया है कि किस वर्ष गांव की जनसंख्या क्या होगी, उसकी ज़रूरतें क्या होंगी और वो कहां से पूरी होंगी। वर्तमान ज़रूरतों को वर्तमान सरकारी योजनाओं से कैसे पूरा किया जा सकता है और जो सरकारी योजनाओं से पूरी नहीं होंगी उनके लिए क्या करना होगा।
ग्राम सभा के कुछ अहम फैसले-
पानी की चोरी बन्द:
सबसे अहम रहा है पानी बेचने का फैसला। गांव वालों ने लगकर पानी की कमी पूरी की। पानी के स्रोत ठीक किए। तालाब में पानी बढ़ गया। तो पानी का व्यापार शुरू हो गया। कुछ लोगों ने तालाब का पानी टैंकर में भरकर बाहर ले जाकर बेचने का धंधा शुरू कर दिया। इसमें गांव के भी कुछ लोग शामिल थे। लेकिन ग्राम सभा में जब ये मुद्दा उठा तो तय हुआ कि गांव का पानी इस तरह बेचा नहीं जाना चाहिए। ग्राम सभा में निर्णय लेकर तालाब के चारों तरफ बाउण्ड्री वाल बनवाई गई और गेट लगाकर ताले जड़ दिए गए। अब इस तालाब से सिर्फ गांव के पीने के लिए पानी निकाला जाता है।
गरीबों को मकान:
गांव का दूसरा अहम फैसला था गांव के ऐसे गरीब परिवारों को मकान देने का जिनके नाम बीपीएल सूची में नहीं थे। सरकारी बीपीएल सूची जब बनी थी तो इसमें काफी धांधली हुई थी और अपेक्षाकृत गरीब परिवारों के नाम इस सूची में नहीं डाले गए थे। दूसरी तरफ इन्दिरा आवास आवास योजना का लाभ केवल उन लोगों को ही मिल सकता है जिनके नाम बीपीएल सूची में हैं। अत: ग्राम सभा की बैठक में 35 ऐसे बेघर परिवारों को चिन्हित किया गया जो बेहद गरीब हैं और बीपीएल सूची में नहीं हैं। इन परिवारों को ग्राम पंचायत की निजी आय से मकान बनाने का पैसा दिया जा रहा है।
गांव की ज़मीन की रक्षा:
ग्राम सभा का एक और अहम फैसला था गांव की गोचर ज़मीन की सुरक्षा का। गांव में पत्थर की चट्टाने हैं और इनका खनन किया जाता है। खनन माफिया ने अधिकारियों के साथ मिलकर खाली पड़ी पंचायत की ज़मीन पर खनन का काम शुरू कर दिया। पंचायत की शिकायतों का जब कोई असर नहीं हुआ तो ग्राम सभाओं में फैसले लेकर बाकयदा गांव की ज़मीन की नाप ली गई। खनन के काम को इस नाप से आगे न बढ़ने देने के लिए अधिकारियों के यहां ज्ञापन दिए गए, धरना प्रदर्शन किए गए तब जाकर खनन माफिया की लगाम कसी गई।
गांव में गाय खेती न चर जाएं इसलिए फसल के दौरान साझा गौचर का काम चलाया जाता है और खेती की रक्षा होती है इसलिए ग्राम सभा के फैसले के मुताबिक किसानों से 5 रुपए से 7 रुपए प्रति बीघा लिया जाता है जिससे गांव की गायों के चारे की व्यवस्था की जाती है।
गांव में आप के खूब झगड़े थे। आए दिन लोग एक दूसरे के खिलापफ एफ.आई.आर करवाते रहते थे। महीने में एक दो केस दर्ज होना सामान्य बात थी। धीरे-धीरे जब ग्राम सभाएं होने लगीं तो ये मुद्दे भी उठे और आश्चर्यजनक रूप से लोगों के मतभेद कम होते चले गए।
गांव में लोग कचरा इधर-उधर फैलाते थे। निर्मल ग्राम योजना का भी कोई फायदा नहीं पहुंच रहा था। तब ग्राम सभा में स्वच्छता की ज़रूरत पर भी चर्चा हुई और सब लोगों ने मिलकर कचरा निस्तारण की व्यवस्था की।
गांव में राशन की चोरी होनी बन्द हो गई है। पटवारी, आशा बहन, आंगनवाड़ी वर्कर आदि सबका ग्राम सभा में आना ज़रूरी है। पंचायत भवन में एक रजिस्टर रखा है। अगर किसी को शिकायत होती है तो उस पर लिख जाता है। पंचायत उस पर कार्रवाई करती है। ज़रूरत पड़ने पर अगली ग्राम सभा में भी उस पर चर्चा होती है।
एक ग्राम सभा में गांव के अस्पताल में काम कर रहे एक चिकित्साकर्मी पर आरोप लगा के वह दवाईयों के पैसे लेता है। ग्राम सभा में चर्चा हुई। चिकित्साकर्मी को भी बैठक में बुलाकर पूछा गया.। कौन-कौन सी दवाई फ्री मिलती है। आरोपी से जिस दवाई के पैसे लिए गए उसके बारे में पूछताछ की गई। पता चला कि चिकित्साकर्मी अस्पताल में मिलने वाली दवाईयों के अतिरिक्त भी कुछ दवाएं गांववालों की सुविधा के लिए अपने साथ रखता था ताकि उन्हें ज़रूरत के वक्त शहर न भागना पड़े। बात समझने पर लोगों ने उसकी तारीफ की।
सबसे अहम रहा है पानी बेचने का फैसला। गांव वालों ने लगकर पानी की कमी पूरी की। पानी के स्रोत ठीक किए। तालाब में पानी बढ़ गया। तो पानी का व्यापार शुरू हो गया। कुछ लोगों ने तालाब का पानी टैंकर में भरकर बाहर ले जाकर बेचने का धंधा शुरू कर दिया। इसमें गांव के भी कुछ लोग शामिल थे। लेकिन ग्राम सभा में जब ये मुद्दा उठा तो तय हुआ कि गांव का पानी इस तरह बेचा नहीं जाना चाहिए। ग्राम सभा में निर्णय लेकर तालाब के चारों तरफ बाउण्ड्री वाल बनवाई गई और गेट लगाकर ताले जड़ दिए गए। अब इस तालाब से सिर्फ गांव के पीने के लिए पानी निकाला जाता है।
गरीबों को मकान:
गांव का दूसरा अहम फैसला था गांव के ऐसे गरीब परिवारों को मकान देने का जिनके नाम बीपीएल सूची में नहीं थे। सरकारी बीपीएल सूची जब बनी थी तो इसमें काफी धांधली हुई थी और अपेक्षाकृत गरीब परिवारों के नाम इस सूची में नहीं डाले गए थे। दूसरी तरफ इन्दिरा आवास आवास योजना का लाभ केवल उन लोगों को ही मिल सकता है जिनके नाम बीपीएल सूची में हैं। अत: ग्राम सभा की बैठक में 35 ऐसे बेघर परिवारों को चिन्हित किया गया जो बेहद गरीब हैं और बीपीएल सूची में नहीं हैं। इन परिवारों को ग्राम पंचायत की निजी आय से मकान बनाने का पैसा दिया जा रहा है।
गांव की ज़मीन की रक्षा:
ग्राम सभा का एक और अहम फैसला था गांव की गोचर ज़मीन की सुरक्षा का। गांव में पत्थर की चट्टाने हैं और इनका खनन किया जाता है। खनन माफिया ने अधिकारियों के साथ मिलकर खाली पड़ी पंचायत की ज़मीन पर खनन का काम शुरू कर दिया। पंचायत की शिकायतों का जब कोई असर नहीं हुआ तो ग्राम सभाओं में फैसले लेकर बाकयदा गांव की ज़मीन की नाप ली गई। खनन के काम को इस नाप से आगे न बढ़ने देने के लिए अधिकारियों के यहां ज्ञापन दिए गए, धरना प्रदर्शन किए गए तब जाकर खनन माफिया की लगाम कसी गई।
गांव में गाय खेती न चर जाएं इसलिए फसल के दौरान साझा गौचर का काम चलाया जाता है और खेती की रक्षा होती है इसलिए ग्राम सभा के फैसले के मुताबिक किसानों से 5 रुपए से 7 रुपए प्रति बीघा लिया जाता है जिससे गांव की गायों के चारे की व्यवस्था की जाती है।
गांव में आप के खूब झगड़े थे। आए दिन लोग एक दूसरे के खिलापफ एफ.आई.आर करवाते रहते थे। महीने में एक दो केस दर्ज होना सामान्य बात थी। धीरे-धीरे जब ग्राम सभाएं होने लगीं तो ये मुद्दे भी उठे और आश्चर्यजनक रूप से लोगों के मतभेद कम होते चले गए।
गांव में लोग कचरा इधर-उधर फैलाते थे। निर्मल ग्राम योजना का भी कोई फायदा नहीं पहुंच रहा था। तब ग्राम सभा में स्वच्छता की ज़रूरत पर भी चर्चा हुई और सब लोगों ने मिलकर कचरा निस्तारण की व्यवस्था की।
गांव में राशन की चोरी होनी बन्द हो गई है। पटवारी, आशा बहन, आंगनवाड़ी वर्कर आदि सबका ग्राम सभा में आना ज़रूरी है। पंचायत भवन में एक रजिस्टर रखा है। अगर किसी को शिकायत होती है तो उस पर लिख जाता है। पंचायत उस पर कार्रवाई करती है। ज़रूरत पड़ने पर अगली ग्राम सभा में भी उस पर चर्चा होती है।
एक ग्राम सभा में गांव के अस्पताल में काम कर रहे एक चिकित्साकर्मी पर आरोप लगा के वह दवाईयों के पैसे लेता है। ग्राम सभा में चर्चा हुई। चिकित्साकर्मी को भी बैठक में बुलाकर पूछा गया.। कौन-कौन सी दवाई फ्री मिलती है। आरोपी से जिस दवाई के पैसे लिए गए उसके बारे में पूछताछ की गई। पता चला कि चिकित्साकर्मी अस्पताल में मिलने वाली दवाईयों के अतिरिक्त भी कुछ दवाएं गांववालों की सुविधा के लिए अपने साथ रखता था ताकि उन्हें ज़रूरत के वक्त शहर न भागना पड़े। बात समझने पर लोगों ने उसकी तारीफ की।
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