Visit blogadda.com to discover Indian blogs मेरा गाँव मेरी सरकार: किसके लिए काम करती हैं सरकारें?

किसके लिए काम करती हैं सरकारें?

आम आदमी असहाय हो कर ये देखता रहता है कि कैसे सरकारी फण्ड का इस्तेमाल ऐसे कामों पर खर्च किया जा रहा है जो उसकी वर्तमान और भविष्य की प्राथमिकताओं से कहीं दूर हैं। शानदार दिखने वाली योजनाएं, बजट में गरीबी हटाने के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए की घोषणाएं........ देश के 7 लाख गांवों, शहरों और नगरों में रहने वाले 150 करोड़ लोगों की प्राथमिकताएं दिल्ली में बैठे कुछ नेता और अफसर तय करते है। 
उदाहरण के तौर पर, पूर्वी दिल्ली के झुग्गी-झोपड़ी वालों को पीने का पानी तक नहीं मिलता लेकिन दिल्ली नगर निगम ने उसी कालोनी में एक संगीतमय फव्वारा बनाने पर 60 लाख रुपयें खर्च कर दिए।
इसी इलाके के लोग चाहते थे कि उनके यहां सीवर का काम हो जाएं ताकि वो अपने घरों में शौचालय का निर्माण करा सके। इस पर 80 लाख रुपयें का खर्च आ रहा था। लेकिन सरकार ने इस मांग को खारिज कर दिया जबकि यही सरकार हर साल नए सार्वजनिक शौचालय बनाने पर 1 करोड़ रुपये खर्च कर रही थी।
आज गांव में के विकास के नाम पर खर्च किया जा रहा ज्यादातर पैसा गांवों में महज़ योजनाओं के रूप में पहुंचता है। 
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से मिले आकड़ों के मुताबिक पंचायतों तक पहुचनें वाले फण्ड में से 90 प्रतिशत से ज्यादा फण्ड किसी न किसी योजना के रूप में ही पहुंचा। 
उड़ीसा के एक गांव में कुछ दिन पहले डायरिया फैल गया। गांव के लगभग सारे परिवार इससे प्रभावित थे। नजदीकी अस्पताल भी 10 किलो मीटर दूर था। सार्वजनिक परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं थी। ग्राम पंचायत के पास फण्ड था लेकिन ये फण्ड दूसरी योजनाओं के लिए था। इस तरह, पैसा होने के बावजूद लोगों को अस्पताल तक नहीं पहुंचाया जा सका और 7 लोगों की मौत हो गई।
एक और दिलचस्प वाकया है जो इस स्कीम राज के चरित्र को उजागर करता है। केन्द्र सरकार के एक मन्त्रालय के संयुक्त सचिव ने जल संरक्षण की एक अनोखी योजना बनाई। उसे लगा कि अगर देश का हरेक गांव यदि अपने अपने पानी को संरक्षित करना शुरू कर दे पानी की समस्या का समाधान निकल आएगा। उसने योजना बनाई कि जो गांव जल संरक्षण के लिए निर्माण कार्य कराएगा उसे केन्द्र सरकार की तरफ से 50000 रूपयें की सहायता दी जाएगी। योजना केन्द्र से चल कर राज्यों की राजधानियों से होते हुए जिला मुख्यालयों तक पहुंची। जिला क्लेक्टर ने सरपंचों को बुला कर योजना के बारे में बता दिया। एक सरपंच योजना की जानकारी ले कर अपने गांव पहुंचा। गांववालों को जब इस योजना के बारे में सरपंच ने बताया तो गांव वालों के पास हंसने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। वजह उस गांव में हर साल बाढ़ आती थी अत: वहां पानी के संचयन की योजना की नहीं बल्कि पानी की दिशा बदलने की योजना की आवश्यकता थी। 
इसी तरह, पश्चिमी बंगाल के गांवों में, एक पंचायत को सालाना करीब 6 करोड रुपए मिलते हैं लेकिन बहुत से गांवों में ज़रूरत के बाद भी स्कूल इसलिए नहीं बनाए जा सके हैं क्योंकि यह सारा पैसा योजनाओं का होता है, और सिर्फ योजनाओं में ही लगाया जा सकता है। 
ऊपर बताए गए विवरण तो चन्द उदाहरण मात्र हैं, पूरे देश की शासन व्यवस्था, कदम कदम पर इस तरह की अव्यवस्थाओं से भरी पड़ी है। हर रोज़, हर गांव शहर में ऐसे ढेरों उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। ऐसा मालूम होता है कि यह देश बिना केन्द्र और राज्य सरकारों के नहीं चल ही नहीं सकता। निचले स्तर पर शासन व्यवस्था का कोई ऐसा मंच नहीं है जहां आम आदमी मिल बैठ कर अपनी प्राथमिकताएं तय कर सके जिसे सरकार को मानना पड़े। 

2 comments:

Unknown said...

चुनौतिया है तो उम्मीदे भी ......
सरकारी पैसे से मेरा रिश्ता है ,जब पैसा मेरा है तो मुझ से पूछते क्यों नही,अब एक बात बताइए कि सरकार के नेता और अफसरों ने हमसे कभी पूछा कि आपका पैसा, आपके गांव में हम कहां, कैसे, किस काम पर खर्च करें?आप इनका कुछ बिगाड़ सकते हैं… किसी के खिलाफ आप कुछ एक्शन ले सकते हैं… कुछ ऐसा तरीका है कि आप इनके खिलाफ एक्शन ले सकें…आप में से अगर 10 युवा भी दिल पर हाथ रखकर ये सोचें कि मैं अपने गांव से प्यार करता हूं और अपने गांव के लिए कुछ करना मेरा फर्ज है तो आपके गांव में भी ग्राम सभाएं शुरू हो सकती है।आज से आप एकता में जियोगे… संघे शक्ति कलयुगे .... वोट का चोट गुरु मंत्र । चुप्पी तोरने के बाद के बाद कम से कम 10-15 लोग हर गांव से आगे आते हैं। यह परिवर्तन का मूल मंत्र अपनी मुद्दा बता दे ।

Unknown said...

संसद निधि और विधायक निधि खर्च का मांगे हिसाब
दोस्तो ,
लोक सभा ,राज्य सभा के सदस्यो को अपने क्षेत्र का विकास के लिए पाच करोड़ प्रति वर्ष फ़ंड मिलता है । इस योजना का नाम एमपीएलएडीएस (मेम्बर ऑफ पार्लियामेंट लोकल एरिया दडेभलोपमेंट स्कीम )है । एम पी को 5 साल मे 25 करोड़ और राज्य सभा सदस्य को 6 साल मे30 करोड़ मिलता है । एक संसद के लिए अपने क्षेत्र के विकास के लिए इतना राशि कम नहीं होता है । इन्हे इतना खर्च जनहित के कामो मे करना होता है । वे पैसे कहा ,कैसे ,कितना खर्च करेगे इस संबंध मे दिशा निर्देश बना हुआ है । जनता आशा करती है की सांसद पूरा पूरा और सही सही उपयोग करेंगे । इसी तरह से विधायक फंड, 5 साल मे 10 करोड़ और एमएलसी 6 साल मे 12 करोड़ है । इनसे भी आम जनता की अपेक्ष है की ये भी पूरा पूरा और सही सही उपयोग करेंगे। ताकि उनके क्षेत्र की विकास से बिहार और देश का विकास हो सके । चूंकि हर संसदीए एवं विधान सभा क्षेत्र का बड़ा इलाका गांव पंचायत है तो ,ईमानदारी और तत्परता से काम करे तो गांव का काफी विकास कर बहुत कुछ भला कर सकते है । इसका लाभ सही और कमजोर वर्ग को मिले सके । लेकिन ज्यादातर जन प्रतिनिधि इस राशि का सदौपियोग नहीं करते या जनता को बताते नहीं है। परिणाम मे पेच है ?आप समझ गए होंगे । जनता को इस निधि के खर्च के बारे मे जानने का पूरा पूरा अधिकार है । जनप्रतिनिधि से पूछ सकते है,सूचना के अधिकार का भी इस्तेमाल कर सकते है । इस संबंध मे सरकार का निर्देश सभी उपायुक्तों /जिलाधिकारियों को मिला हुआ है।
फंड से किस तरह के कार्य ----1-पंचायती जर संसथाओ को प्रथमकता 2-एससी -एसटी के लिए राशि सुरक्शित 3- सोसाइटी को भी मिलती है राशि 4- खेल-कूद के लिए राशि 5-निःशकतो को भी लेने का अधिकार 6-किताबों के लिए मिलती है राशि 7-बार एसोसिएशन को भी मदद 8- बोरिंग और रेलवे हॉल्ट के लिए भी 9-हर अनुशंसा को उसके गुण -दोष के आधार पर सभी उपायुक्तों /जिलाधिकारियों की है ।

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