उदयपुर से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर राजसमन्द जिले में एक ग्राम पंचायत है पिपलान्त्री। 16 सौ की आबादी वाली यह ग्राम पंचायत विकास के नित नए आयाम गढ़ रही हैं। अरावली की संगमरमर की पहाड़ियों पर बसे पिपलान्त्री को देख कर गर्व होता है कि भारत गांवों का देश है और अब गांव भारत के लोकतन्त्र को सही मायनों में परिभाषित कर रहे हैं।
यह यहां के लोगों द्वारा मिलजुल कर लिए गए फैसलों का ही नतीजा है कि पिछले कई सालों से सूखे की मार झेल रहे पिपलान्त्री की पहाड़ियों से मीठे पानी के चश्मे फूट रहे हैं और पत्थरों पर फूल खिल रहे हैं।
आप गांव में घूमेंगे तो ऐसा कतई नहीं लगेगा जैसा राजस्थान के दूरदराज के गांव के खयाल से एक तस्वीर बनती है। पूरे गांव में पक्की सड़कें, हर घर में पानी का कनैक्शन, दुधिया स्ट्रीट लाइटों से जगमगाती गलियां, प्राइमरी से ले कर इंटर तक के अच्छे स्कूल-कालेज, महापुरूषों की प्रतिमाओं से सजे चौराहे और गांव के लोगों को सुकून देता यहां का एयरकण्डीशन पंचायत घर। यानी वह हर सुख सुविध जो किसी अच्छे शहर में भी मुयस्सर नहीं होती।
पिपलान्त्री में विकास की जो इबारत लिखी जा रही है, उसकी कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है। तकरीबन 6-7 साल पहले तक गांव वाले नहीं जानते थे कि पंचायत का मतलब क्या होता है या गांव के विकास पंचायत द्वारा कराये भी जा रहे हैं या नहीं।
चूंकि यह गांव संगमरमर की पहाड़ियों पर बसा है और गांव के चारों ओर बड़े पैमाने पर संगमरमर के खनन का काम होता है। खनन के दौरान निकलने वाले मलबे को गांव में ही डाला जाता था, जिससे यहां न केवल पत्थरों के मलबे के पहाड़ बन रहे थे बल्कि गांव की जमीन और आबोहवा भी खराब हो रही थी।
गांव वालों ने तो इसे जैसे अपनी नियति ही मान लिया था, पंचायत की बागडोर पिछले 3 दशकों से एक ही परिवार के हाथों में थी।
साल 2005 में जब ग्राम पंचायत के चुनाव हुए तो पंचायत की बागडोर गांव के ही नौजवान श्याम सुन्दर पालीवाल के हाथ में आ गई।
बदलाव की बयार:
श्याम सुन्दर पालीवाल ने सरपंच बनते ही सबसे पहले पंचायत घर को दुरुस्त करवाया। पालीवाल बताते हैं, चूंकि पंचायत घर में गांव के हर वर्ग के लोग आते हैं। यहां बैठ कर लोगों को सकून मिले इसलिए पचायत घर की इमारत को दुरूस्त करवा कर आरामदायक कुर्सियां लगवाईं. सुन्दर फर्नीचर और बिजली, पानी समेत सभी सुविधओं से लैस एयरकण्डीशन पंचायत घर तैयार करवाया. पिपलान्त्री में राजस्थान का पहला एयरकण्डीशण्ड पंचायत घर है।
ग्राम सभा को बनाया आधर:
पालीवाल बताते हैं, गांव में समस्याओं का अंबार लगा था। काम बहुत करने थे, लेकिन काम कहां से और कैसे शुरू करें, इस के लिए मैंने ग्राम सभा का सहारा लिया, शुरूआत हुई शिक्षा में सुधर से।
पंचायत घर से शुरू हुई गांव के विकास की यात्रा स्कूल, सड़क, पानी, स्ट्रीट लाईट से होती हुई आज तक बदस्तूर जारी है।
लोगों की भागीदारी:
पिपलान्त्री में खास बात यह है कि यहां के हर काम में गांव के लोग जुड़े हुए हैं। मसलन, यहां स्ट्रीट लाईट सड़क पर न लग कर घरों के बाहर लगी हैं। उस का कनैक्शन भी घर के मीटर से है। स्ट्रीट लाईट के बिजली के बिल से ले कर रख-रखाब की पूरी जिम्मेदार घर के परिवार पर है। जो परिवार स्ट्रीट लाईट का रख-रखाव नहीं करता उस के घर से वह लाईट उतरवा ली जाती है।
छोटे-बड़े सभी का खयाल:
पिपलान्त्री में मानवीयता की भी कई मिसाल हैं। गांव में कई जगह सोलर पंप लगे हैं। गांव वालों की सलाह पर वहां पशुओं को पानी पीने के लिए हौदी बनवाई गईं। एक आदमी ने सलाह दी कि इन हौदियों में जब गिलहरी और चूहा जैसे छोटे जानवर पानी पीने के लिए आते हैं तो अकसर पानी में गिर जाते हैं और निकलने का रास्ता न होने पर पानी में मर जाते हैं। इसके लिए हौदी में छोटी-छोटी सीढ़ियां बनवाई गईं हैं।
पेड़ बने भाई:
पत्थरों के इस गांव में लहलहाती हरियाली और झूमते पेड़ सरकार द्वारा चलाई जा रही पर्यावरण बचाने की मुहिम के लिए सब से अच्छ मिसाल हो सकते हैं। यहां पेड़ लगाना पर्यावरण के लिए महज खानापूर्ति नहीं है बल्कि एक रिश्ता है, एक स्नेह है। गाँव वाले मिलकर एक लाख से भी ज्यादा पेड़पौधें लगा चुके हैं। इसमें गांव की महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा है। गांव में हर किसी के नाम से एक पेड़ लगा हुआ है। उसकी सिंचाई, काटछांट और पशु आदि से देखभाल की जिम्मेदारी उसी पर है जिस के नाम पर वह पेड़ है।
गांव में जब किसी की मृत्यु होती है तो उस परिवार के लोग मृतक की याद में 11 पेड़ लगाते हैं और हमेशा के लिए उनकी देखभाल करते हैं।
जब किसी घर में लड़की का जन्म होता है तो ग्रांम पंचायत द्वारा उस लड़की के नाम 18 साल के लिए 10 हजार रुपए की राशि जमा की जाती है। मगर लड़की के मांबाप द्वारा 10 साल तक हर साल 10 पौधे रोपे जाते हैं। इस तरह लड़की के ब्याहशादी लायक कुछ पैसे जमा हो जाते हैं और गांव को 180 पेड़ मिल जाते हैं।
पेड़ों को बचाने के लिए गांव में एक अनौखी मुहिम चलाई हुई है। हर रक्षाबंध्न के त्योहार पर गांव की महिलाएं पेड़ों को भाई मान कर उस को रखी बांध्ती हैं और पेड़ की सुरक्षा का वचन लेती हैं।
श्याम सुन्दर पालीवाल बताते हैं कि पेड़ लगाने में कुछ बातों का खयाल रखा जाता है। ज्यादातर फलदार पौधे लगाए जाते हैं ताकि जब ये पेड़ बन कर फल दें तो गांव की गरीब महिलाएं उन फलों को बेच कर कुछ आमदनी हासिल करें।
गांव में बडे़ पैमाने पर एलोवेरा यानी ग्वारपाठा लगाया जा रहा है। गांव की हर पहाड़ी और हर रास्ते में एलोवेरा लगा है। पंचायत की योजना है कि यहां एलोवेरा जूस का प्लांट लगा कर खुद ही उसकी बिक्री की जाएगी।
इस पंचायत के सचिव जोगेन्द्र प्रसाद शर्मा की नियुक्त यहां कुछ महीने पहले ही हुई है। वह बताते हैं कि जब से वह इस गांव में आए हैं पौधे ही लगवा रहे हैं।
एनीकट बने जीवनधरा:
बरसात के समय पहाड़ियों से हो कर नीचे बेकार बहने वाले पानी को एक जगह इकट्ठा करने के लिए गांव में कई जगह एनीकट बने हैं। आज इन्हीं एनीकटों की बदौलत गांव के हर घर में पीने के पानी का कनैक्शन है।
पारदर्शित:
वैसे तो पंचायत के हर काम में गांव के हर आदमी की भागीदारी है। मगर फिर भी सभी जानकारियों को गांव की वेबसाइट पिपलान्त्री.कॉम पर समय-समय पर डाला जाता है।
श्याम सुन्दर पालीवाल अब पूर्व सरपंच बन चुके हैं। मगर आज भी हर काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
गांव में साफसफाई की बदौलत ही पिपलान्त्राी की निर्मल ग्राम पंचायत का खिताब मिल चुका है।
पिपलान्त्री पंचायत से 7 और गांव जुड़े हैं। पिपलान्त्री की तरह उन सभी गांवों में भी पक्की सड़क, सामुदायिक शौचालय और पानी के कनैक्शन हैं।
खेल उर्जा:
गांव के लोग पर्यावरण को ले कर कितने जागरूक हैं, इस बात का अन्दाजा यहां लगी सोलर स्ट्रीट लाईट, सोलर वाटर पंप और झूला पंपों को देखकर लगाया जा सकता है।
यहां स्कूलों में जमीन से पानी निकालने और उसे टंकी में इकट्ठा करने के लिए झूलों की मदद ली जाती है। एक स्कूल में चकरी वाला झूला लगा है। बच्चे इसे घूमाते हैं और उस पर झूलते हैं। एक स्कूल में सिसौ झूला लगा है। ये दोनों ही झूले हैण्डपंप की तरह काम करते हैं। झूलों से खींचे गए पानी को स्कूल में पीने और साफसफाई आदि के कामों में लिया जाता है।
मुश्किलों भरी राह:
गांव में मार्बल के पहाड़ हैं। यहां कई बड़ीबड़ी कंपनियों द्वारा मार्बल खनन का काम हो रहा है। ये कंपनियां मार्बल का मलबा गांव की जमीन पर डालती आ रही थीं। नतीजतन, गांव में मलबे के पहाड़ तो बन ही रहे थे, साथ ही खेती की जमीन और आबोहवा भी खराब हो रही थी।
श्याम सुन्दर पालीवाल ने गांव वालों को साथ लेकर कंपनियों का विरोध् किया। चूंकि कंपनियों के पास ग्राम पंचायत और प्रशासन की एनओसी थी, इसलिए पालीवाल को पूर्व सरपंच और स्थानीय प्रशासन से भी कड़ी टक्कर लेनी पड़ी। आखिरकार जीत गांव वालों की हुई। और आज इन खदानों से ग्राम पंचायत को आमदनी भी होने लगी है.