दिल्ली झुंझनू मार्ग पर, झुंझनू से करीब 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाला एक गांव, यहां की साफ सफाई, चमचमाती हुई सड़क, बरबस ही यहां से गुजरने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। रास्ते में एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है `मुस्कराईए कि आप राजस्थान के गौरव बख्तावरपुरा गांव से गुजर रहे हैं´।
रुककर गांववालों से बात करते हैं तो पता चलता है कि इस गांव में आज पानी की एक बून्द भी सड़क पर या नाली में व्यर्थ नहीं बहती। हर घर से निकलने वाले पानी की एक एक बून्द ज़मीन में रिचार्ज कर दी जाती है। इसके लिए लगभग हर दो-तीन घरों के सामने सड़क के नीचे पानी को ज़मीन में रिचार्ज करने वाली सोख्ता कुईंया बना दी हैं। गांव में कई बड़े कुएं बने हैं जहां बारिश के पानी की एक-एक बून्द इकट्ठा की जाती है। ग्राम सरपंच महेन्द्र कटेवा बताते हैं कि गांव की ज़रूरतों के लिए हर रोज़ साढ़े चार लाख लीटर पानी ज़मीन से निकाला जाता है लेकिन इसमें से करीब 95 फीसदी वापस उसी दिन रिचार्ज कर दिया जाता है। पानी की कमी से जूझ रहे राजस्थान के गांवों के लिए यह एक बड़ी घटना है।
करीब 10 साल पहले तक यहां गांव के अन्दर की सड़कों पर ही नहीं मुख्य सड़क पर भी घरों से निकलने वाला पानी भरा रहता था और हर वक्त कीचड़ बना रहता था। सरपंच महेन्द्र कटेवा और कुछ अन्य लोगों ने मिलकर अपने घर का पानी ज़मीन में रिचार्ज करना शुरू किया। इसके लिए घर के सामने, सड़क के नीचे 30 फीट गहरी और तीन फीट चौड़ी कुईं बना कर उसके ऊपर से बन्द कर दिया गया। इसमें उन्हें तो सफलता मिली लेकिन गांव के बाकी लोगों ने इसमें ज़रा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। और चार पांच घरों का पानी रुकने से कीचड़ की स्थिति पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था। तब सरपंच ने ग्राम सभा की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की। इसके फायदे सुनकर गांव के कुछ और लोगों ने भी मिलकर अपने घरों के सामने ऐसे ही सोख्ता पिट बनवा लिए। इससे सरपंच को लगा कि जो बात गांववालों को अलग-अलग नहीं समझाई जा सकती वह एक साथ बैठक में समझाई जा सकती है। इसके बाद तो गांव में हर महीने करीब-करीब दो ग्राम सभाएं होने लगीं। कानूनन राजस्थान में हर महीने की 5 व 20 तारीख को पंचायत सदस्यों की बैठक होनी ज़रूरी है। लेकिन ये बैठकें अगर कहीं होती भी हैं तो पंचायत सदस्यों के ही लिए हैं। परन्तु बख्तावरपुरा में इसमें गांव के लोगों को बुलाया जाने लगा। और धीरे-धीरे गांव में हर महीने दो बैठकें होने लगीं जहां गांव वाले एक निश्चित तारीख को अपनी बात रख सकते हैं, पूछ सकते हैं।
इन बैठकों से गांव के विकास का रास्ता निकला। धीरे-धीरे पूरा गांव न सिर्फ कीचड़मुक्त हो गया है बल्कि लोग साफ सफाई भी रखने लगे हैं। इसका फायदा यह हुआ है कि गांव में अब मच्छर नहीं हैं। मच्छर न होने से बीमारियां कम हो गई हैं। कटेवा बताते हैं कि `इन बैठकों में लिए गए फैसलों को लोग अपने धर्म की तरह मानते हैं। अगर निर्णय सामुहिक नहीं होते तो यह काम होता ही नहीं। और अगर होता कोई कर भी लेता तो फेल हो जाता। आज पूरे वाटर रिचार्ज सिस्टम में कहीं कोई गड़बड़ी आती है तो गांव का हर व्यक्ति यह सोच रखता है। और वो आकर मुझे बताता है। कि आज फला उस नाली में गड़बड़ी हो गई थी। वो कचरा आ गया था। तो हमने दो आदमी को भेज दिया और नाली ठीक चल रही है।´
साफ सफाई के रूप में मिली सफलता ने गांव वालों को अपने गांव से जोड़ दिया... इसके बाद गांव में होने वाले हर छोटे बड़े काम में गांव के लोग अपनी राय रखते हैं और उनकी बात मानी भी जाती है। इसका एक उदाहारण गांव में मेन रोड पर बना बस स्टैण्ड है। इसमें पंखे लगे हैं, पीने के पानी की व्यवस्था है, इस बस स्टैण्ड का मुद्दा ही नहीं डिज़ाइन तक भी गांव के लोगों की बैठक में तय हुआ है। सरकारी की योजना में इसके रंग रोगन के लिए चूना-पुताई के पैसे आते हैं लेकिन गांव वालों ने तय किया कि इसे हम अच्छे पेंट से रंग कराएंगे। इस पर अधिकारियों को आपत्ति हुई तो गांव वालों ने उनकी एक न चलने दी और आज इस बस स्टैण्ड की सुन्दरता भी लोगों यहां से गुजरते लोगों को अहसास कराती है कि वे किसी खास गांव से गुजर रहे हैं।
इसी सड़क पर रात को रोशनी के लिए सोलर लाईट्स लगाई गई हैं। महेन्द्र सिंह कटेवा का कहना है कि `ये सोलर लाईट्स गांव वालों ने ही स्थान तय करके लगवाई हैं और आज इनकी बैटरियों, बल्बों की रक्षा के लिए खुद गांव वाले आते जाते सतर्क रहते हैं। अगर ये बिना ग्राम सभा में बातचीत के लगा दी गईं होतीं तो इनका नामो निशान भी यहां नहीं होता।´
और इसका एक मन्त्र है सरपंच का यह मानना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। ग्राम सभा की बैठकों में लोगों की बात सुनी जाती है और उस पर अमल होता है। इसका फायदा यह हुआ है कि गांव के विकास के लिए किए जाने वाले हर काम को लोग अपना काम मानते हैं।
साफ सफाई के रूप में मिली सफलता ने गांव वालों को अपने गांव से जोड़ दिया... इसके बाद गांव में होने वाले हर छोटे बड़े काम में गांव के लोग अपनी राय रखते हैं और उनकी बात मानी भी जाती है। इसका एक उदाहारण गांव में मेन रोड पर बना बस स्टैण्ड है। इसमें पंखे लगे हैं, पीने के पानी की व्यवस्था है, इस बस स्टैण्ड का मुद्दा ही नहीं डिज़ाइन तक भी गांव के लोगों की बैठक में तय हुआ है। सरकारी की योजना में इसके रंग रोगन के लिए चूना-पुताई के पैसे आते हैं लेकिन गांव वालों ने तय किया कि इसे हम अच्छे पेंट से रंग कराएंगे। इस पर अधिकारियों को आपत्ति हुई तो गांव वालों ने उनकी एक न चलने दी और आज इस बस स्टैण्ड की सुन्दरता भी लोगों यहां से गुजरते लोगों को अहसास कराती है कि वे किसी खास गांव से गुजर रहे हैं।
इसी सड़क पर रात को रोशनी के लिए सोलर लाईट्स लगाई गई हैं। महेन्द्र सिंह कटेवा का कहना है कि `ये सोलर लाईट्स गांव वालों ने ही स्थान तय करके लगवाई हैं और आज इनकी बैटरियों, बल्बों की रक्षा के लिए खुद गांव वाले आते जाते सतर्क रहते हैं। अगर ये बिना ग्राम सभा में बातचीत के लगा दी गईं होतीं तो इनका नामो निशान भी यहां नहीं होता।´
और इसका एक मन्त्र है सरपंच का यह मानना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। ग्राम सभा की बैठकों में लोगों की बात सुनी जाती है और उस पर अमल होता है। इसका फायदा यह हुआ है कि गांव के विकास के लिए किए जाने वाले हर काम को लोग अपना काम मानते हैं।
1 comments:
congrats. we need such efforts at evrry level
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