Visit blogadda.com to discover Indian blogs मेरा गाँव मेरी सरकार: विदेशों में जनता कि भागीदारी

विदेशों में जनता कि भागीदारी

हमने जो शासन व्यवस्था अपनाई है उसमें सत्ता के केंद्र बिन्दु ऊपर हैं और वह नीचे लोगों की तरफ आते आते पूरी तरह अप्रभावी, अक्षम और भ्रष्ट साबित हुई है। इसी क्रम में एक बार अन्य देशों की शासन प्रणाली को देखने और समझने की कोशिश भी करते हैं, देखते हैं कि क्या उससे भी कुछ सीखा जा सकता है।

  
अमेरिका
अमेरिका में कस्बा या शहर स्तर के मामलों में फैसले स्थानीय नागरिक सभा द्वारा ही लिए जाते है। कोई योजना लागू की जाएगी या नहीं, सरकारी अधिकारी ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं इत्यादि के संबंध् में शहर के लोगों की आम सभा टाउन हॉल में बातचीत के जरिए फैसले लेती है। स्थानीय सरकार कोई योजना बनाने से पहले, योजना लागू करने से पहले और योजना के पूरा होने के बाद वहां रहने वाले प्रत्येक परिवार को एक लिखित नोटिस भेज कर उनकी राय मांगती है। मोहल्ले में रहने वाले लोगों की लिखित सहमति के बिना एक फुटपाथ तक का निर्माण नहीं किया जा सकता। जन शक्ति के ऐसे कई दिलचस्प उदाहरण यहां देखने को मिलते हैं।
अमेरीका के ओरेगोन में वाल मार्ट (डिपार्टमेंटल स्टोर चेन) एक स्टोर खोलना चाहता था। ओरेगोन के लोगों ने टाउन हाल में बैठक कर ये निर्णय लिया कि वाल मार्ट यहां अपनी दुकान नहीं खोल सकता, क्योंकि इससे स्थानीय पॉप एंड मॉम स्टोर्स के बंद हो जाने का खतरा हो सकता है और इससे बेरोजगारी बढ़ सकती है। इस तरह वाल मार्ट अपनी दुकान नहीं खोल सका। एक दूसरे शहर में भूमिगत रेलवे के निर्माण का प्रस्ताव था। इससे काफी लोगों के विस्थापन का खतरा था। लोगों ने बैठक कर इस परियोजना के विरुद्ध मतदान किया और अंतत: इस परियोजना को रोकना पड़ा।

ब्राजील
ब्राजील में आम आदमी द्वारा मिल जुल कर बजट बनाने की प्रक्रिया काफी लोकप्रिय हो चुकी है। 1989 में वर्कर्स पार्टी ने पोर्ट अलेगे्र में इसकी शुरुआत की थी। शहर के लोगों का जीवन स्तर बढ़िया बनाने के लिए अपनाए गए सुधरों का एक हिस्सा बजट बनाने की यह प्रक्रिया भी थी। शहर की एक तिहाई जनसंख्या झुग्गियों में रहती थी और इनके पास सामान्य जन सुविधाएं (पानी, शौचालय, स्वास्थ्य सुविधाएं, स्कूल इत्यादि) भी उपलब्ध् नहीं थी।
बजट बनाने की यह प्रक्रिया साल में एक बार होती है जिसमें लोगों की सभाएं मोहल्लों, इलाकों और फिर शहर के स्तर पर होती हैं। स्थानीय लोग अपनी ज़रूरतों की प्राथिमकताएं तय कर यह फैसला करते हैं कि पैसा कहां खर्च करना है। पोर्ट अलेगे्र में हर साल 200 मिलियन डॉलर सिर्फ निर्माण और सेवा क्षेत्र पर खर्च किया जाता है और शहर के 50 हज़ार लोग इसका बजट बनाने की प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं। उल्लेखनीय है कि शहर की कुल आबादी करीब 15 लाख है। बजट बनाने के लिए होने वाली बैठकों में आने वाले लोगों की संख्या 1989 के बाद से लगातार बढ़ी है और इसमें विभिन्न आर्थिक, राजनैतिक पृष्ठभूमि से लोग आते हैं। नतीजा ये रहा कि 1989 से पोर्ट अलेगे्र के नगर निगम चुनावों में वर्कर्स पार्टी ने लगातार 4 बार जीत दर्ज की। 1988 में जहां इस पार्टी को 34 प्रतिशत वोट मिले थे वहीं 1996 में यह बढ़ कर 56 प्रतिशत हो गया। ये पूरे लैटिन अमेरीका में नगर निगम स्तर पर वामपंथी प्रशासकों की असफलता के खिलाफ आम लोगों की प्रतिक्रिया थी।
एक मशहूर बिज़नेस पत्रिका ने पोर्ट अलेगे्र शहर को लगातार चार बार रहन सहन के लिए ब्राज़ील का सर्वोत्तम शहर करार दिया है। 1989 से पहले इस शहर की वित्तीय स्थिति काफी कमजोर थी। इसकी वजह थी, खराब राजस्व प्रणाली, उद्योगों का न होना, भारी भरकम कर्ज में डूबी सरकारी मशीनरी। लेकिन 1991 तक वित्तीय सुधरों का प्रभाव साफ-साफ दिखने लगा था। और इस सब में आम लोगों की भागीदारी से बजट बनाने की प्रक्रिया की अहम हिस्सेदारी थी। 1989 से 1996 के बीच घर में पानी की उपलब्धता वाले परिवारों की संख्या 80 प्रतिशत से बढ़ कर 98 प्रतिशत हो गई। इसी तरह सीवेज सुविधा के मामले में यह प्रतिशत 46 से बढ़ कर 85 प्रतिशत और स्कूल में दाखिला पाने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई। गरीब इलाकों में हरेक साल 30 किलोमीटर सड़कें बनाई गई। प्रशासन में पारदर्शिता के कारण अब लोग करों का भुगतान भी कर रहे थे, जिससे राज्स्व में 50 प्रतिशत की वृद्धि हो गई। अब ब्राजील के लगभग 80 शहर पोर्ट अलेगे्र मंडल को अपना रहे हैं।
पोर्ट अलेगे्र का प्रयोग लोकतांत्रिक जिम्मेवारियों का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसमें समानता का भाव है। शुरुआत में वर्कर्स पार्टी को लेकर मध्य वर्ग सशंकित था लेकिन धीरे-धीरे शहर की बदलती हालत देख कर इन लोगों ने भी सक्रिय भागीदारी निभानी शुरु कर दी।
इस सब का एक बड़ा ही सुखद नतीजा ये रहा कि तकनीकी कर्मचारी, जिसमें बजट बनाने वाले से ले कर इंजीनियर तक शामिल थे, अब आम आदमी से जुड़ने लगे थे। इसे नौकरशाही तकनीक को लोकतांत्रिक तकनीक के रूप में बदलते देखा गया। यहां तक कि कर्मचारियों के आम लोगों के साथ बातचीत करने के तौर तरीकों में भी बदलाव दिखने लगा। सहभागिता से बजट बनाने की प्रक्रिया ब्राजील में शुरु हुई, लेकिन यह लैटिन अमेरिका के सैकड़ों शहरों में फैल गई। आज यह प्रक्रिया यूरोप, एशिया, अफ्रीका, और उत्तरी अमेरिका के कई शहरों में भी अपनाई जाने लगी है।

कनाडा
कनाडा ने अभी-अभी आम लोगों को प्रत्यक्ष रुप से शासन में भागीदार बनाने का फैसला किया है। एक कनाडाई वेबसाइट के मुताबिक सरकार द्वारा यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि वहां लोगों की सरकारी कामकाज में भागीदारी खत्म हो रही थी। नगर निगम के चुनावों में महज 30 से 40 प्रतिशत तक ही मतदान हो पाता था और राज्य स्तर पर तो यह और भी कम हो रहा था। पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों में कनाडा में होने वाले मतदान का प्रतिशत सबसे कम पहुंच चुका था। सरकार और नेताओं में लोगों का विश्वास काफी कम हो गया था। लोगों ने निर्णय प्रक्रिया में शामिल किए जाने की मांग की थी लेकिन इस मामले में सरकार कभी-कभी लोगों से कुछ सलाह ले लिया करती थी। इससे लोगों का सरकार के प्रति विश्वास कम हो रहा था। इस लोकतांत्रिक कमी के चलते सामाजिक समस्याओं, आर्थिक समस्याओं और पर्यावरण को पहुंच रही हानि से निपटने में मुश्किलें आने लगी थी। इसके अलावा कनाडा के बहु सांस्कृतिक समाज के नागरिकों के बीच सामंजस्य में भी दिक्कतें आ रही थी। चूंकि ये सभी चुनौतिया सामूहिक प्रकृति है इसलिए इसका समाधन भी सामूहिक कार्रवाई से ही संभव है।

स्विटजरलैंड 
स्विटजरलैंड को विश्व का सबसे अधिक लोकतांत्रिक देश माना जाता है। आर्थिक मामलों में भी यह सबसे सफल देश माना जाता है। यहां के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय पूरे विश्व में सर्वाधिक है साथ ही यहां के लोगों का जीवन-स्तर विश्व के सर्वोच्च दस देशों में से एक है। स्विटज़रलैंड के सामाजिक और राजनीतिक स्थायित्व के पीछे सबसे बड़ी वजह है इसकी राजनीतिक संस्थाएं जिन्होंने ये सुनिश्चित किया है कि आम आदमी खुद ये तय कर सके कि वो कैसा शासन चाहता है। सरकार ने बहु-सांस्कृतिक जनता के हितों का भी ख्याल रखा है।
स्विटज़रलैंड 26 भागों में बंटा है जिसे कैंटोन कहा जाता है। प्रत्येक कैंटोन 3000 कम्युन से मिल कर बनता है। देश शासन की तीन पायदान हैं- कम्युन, कैंटोन और फेडरल (संघीय) 1848 के फेडरल सविंधान ने देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की व्यवस्था की है। फेडरल स्तर पर इस प्रत्यक्ष लोकतंत्र का आधार, जन अधिकार है जिसमें कोई संवैधानिक प्रक्रिया शुरु करने या जनमत संग्रह शामिल है। और ये दोनों अधिकार अपने आप में इतने ताकतवर हैं जिससे संसदीय निर्णय को भी पलटा जा सकता है।
यहां पर संसद यदि कोई कानून पास करती है और कुछ लोग उसका विरोध् करना चाहें तो 100 दिनों के भीतर 50 हज़ार हस्ताक्षर लोगों से हस्ताक्षर कराकर उसे चुनौती दे सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर जनमत संग्रह के लिए मतदान कराया जाता है कि लोग इस कानून को चाहते हैं या नहीं। 8 कैंटोन मिलकर किसी केंद्रीय कानून के लिए जनमत संग्रह की मांग कर सकते हैं। स्विटज़रलैंड मे हर साल एक दर्जन कानूनों पर जनमत संग्रह का होना कोई बड़ी बात नहीं है। पिछले डेढ़ सौ साल में स्विटज़रलैंड की जनता ने 534 केंद्रीय विधायकों पर अपनी राय दी है, इसके अलावा हज़ारों कैंटोन और स्थानीय स्तर पर हुए मतदान में भी भाग लिया है।
इसी तरह, स्विस संविधान में व्यवस्था है कि नागरिक किसी संवैधनिक संशोधन के लिए भी प्रस्ताव ला सकते है, इसके लिए प्रस्ताव किए जाने के 18 महीनों के भीतर 1 लाख लोगों के हस्ताक्षर जुटाने की ज़रूरत पड़ती है। संसद भी एक संविधान संशोधन का प्रस्ताव पूरक के तौर पर रख सकती है और यदि दोनों प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाते हैं तो फिर इस पर मतदान के जरिए फैसला किया जाता है। नागरिकों या संसद द्वारा प्रस्तावित संशोधन के पास होने के लिए यह आवश्यक है कि उसे दोहरा बहुमत प्राप्त हो, यानि राष्ट्रीय पोपुलर और कैंटोनल पोपुलर वोट, दोनों उसके समर्थन में पड़े।
केंद्रीय या संघीय सरकार कैंटोन को एक एकीकृत देश के रूप में मानता है, केंद्रीय सरकार केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करती है जिसका संबंध् सभी कैंटोंन से हो। ऐसे मामलों में मुख्यत: विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा, रेल और टकसाल आते हैं। इसके अलावा शिक्षा, श्रम, आर्थिक और जन कल्याण की नीतियों से जुड़े मुद्दों पर कैंटोन और कम्यून की सरकारें ही निर्णय लेती हैं। प्रत्येक कैंटोन की अपनी संसद और संविधान होता है और ये एक दूसरे से अलग होती है। इसी तरह कम्यून का स्वरुप भी एक दूसरे से अलग हो सकता है। इसमें कुछ सौ से ले कर 10 लाख तक की जनसंख्या के साथ ही अपनी विधान सभा और कार्यकारी परिषद भी होती है। कैंटोनल और कम्यूनल सरकारों को उस क्षेत्र की जनता चुनती है।
स्विटजरलैंड का संविधान तभी बदला जा सकता है जब जनमत संग्रह के द्वारा मतदाताओं और कैंटोन्स के मतदाताओं का पूर्ण समर्थन मिल जाए। कैंटोन्स के ग्रामीण मतदाता, जो थोड़े रुढ़ीवादी होते हैं उन्हें समझाना आवश्यक हो जाता है क्योंकि उनके मत के बिना संविधान में बदलाव करना मुश्किल है।




0 comments:

Post a Comment